Tuesday, 9 November 2021

बड़े अनुभवी इंसान लगते हो

बड़े अनुभवी इंसान लगते हो
होंठो की शबनम भरी मुस्कान के पीछे छुपी वो तन्हाई की शुष्कता को भली भांति भाँप लेते हो

ये हुनर जन्मजात है तुम्हारा
या फिर तुम भी ऐसी किसी तन्हाई भरे अंधेरे कमरे के वासी हो
जहाँ तुम हो
कुछ पुरानी यादें है
कुछ अनसुने किस्से है
कुछ गहरे राज़ है
और बेइंतेहा परिस्तिथियों के परिदृश्य है
जिनकी सोच में तुम डूबे रहते हो

बड़े अनुभवी इंसान लगते हो

Saturday, 23 October 2021

साक़ी आओ और पिलाओ

साक़ी आओ
और पिलाओ
वो जाम
जो छलकता
तुम्हारे हाथ मे
और साथ मे
तुम्हारी मतवाली चाल
बलखाती तुम्हारी कमर
और लहराते काले बाल
होंठो में मध्धम हंसी
आँखों मे भरी मस्ती
और अंधेरे में चमकते तुम्हारे गाल

साक़ी आओ
और पिलाओ
वो जाम
जो छलकता
तुम्हारे हाथ मे
और मत तड़पाओ
क्योंकि तलब लगी है पीने की
वो जो दवा है मेरे जीने की
और जलन मची है सीने में
क्या मजा आएगा पीने में
जब तुम लाओगी जाम का प्याला
धन्य होगी ये मधुशाला
दिल गाएगा जोर जोर से
प्रेम प्याला प्रेम प्याला

साक़ी आओ
और पिलाओ
वो जाम
जो छलकता
तुम्हारे हाथ मे
और मत तुम रोको आज मुझे
मत होने दो ये अहसास मुझे
की कोई नही इस दुनिया मे
जो समझ सके ये दर्द मेरा
जो साथ मे आके बैठे दो पल
और थाम सके ये हाथ मेरा

साक़ी आओ
और पिलाओ
वो जाम
जो छलकता
तुम्हारे हाथ मे
और थाम के मेरे हाथ को
मत रोको मेरे जज़्बात को
शैतान को
हैवान को
मार जाने दो अंदर के इंसान को
क्योंकि अब नही बचा है कोई भी कारण
मैं जी रहा हु बिन कोई कारण
भटक रहा हु शुबह शाम
दर बदर और सूनी गलियाँ
ढूंढने को बस एक ही कारण
जीने का मेरे एक कारण

साक़ी आओ
और पिलाओ
वो जाम
जो छलकता
तुम्हारे हाथ मे
और आज पिलाओ मुझे तुम इतना
जान बचे ना मुझमे जितना
मर जाऊँगा
मिट जाऊँगा
काम तमाम मैं कर जाऊँगा
और आखरी बार पिलाओ साक़ी
अब मुझमे जान बची ना बाकी
वो प्याला होंठ से मेरे मिला दो
मौत से मुझको आज मिला दो

Saturday, 9 October 2021

कुछ सवाल है मेरे, क्या जवाब दे पाओगी तुम?

कुछ सवाल है मेरे, क्या जवाब दे पाओगी तुम?
क्या साथ मेरा मेरी मौत तक निभा पाओगी तुम?
वो जो कसमे हमने खाई थी, कही तोड़ तो नही दोगी?
क्या वो सारे अधूरे वादे निभा पाओगी तुम?

ये तो मैं कई बार कह चुका हूँ कि मेरी सांसो में बसती हो तुम
इस धड़कते दिल से निकले हर खून के कतरे में हो तुम
क्या तुम्हारी वो साँसे, वो धड़कने मेरे नाम कर पाओगी तुम?

ये दुनिया भी कितनी अजीब है

ये दुनिया भी कितनी अजीब है
अपना हो तो ठिक है
दूसरे का हो तो उसका नसीब है

यहाँ ना कोई किसी के करीब है
जात पात, भेद भाव, ऊंच नीच
यहां कोई अमीर है तो कोई गरीब है

हर तरफ जालसाजी और चालबाजी का दौर है
इस भीड़ में कुछ लोग ईमानदार और शरीफ है

भूत और भविष्य की बाते होती आई है और होती रहेगी
जरूरत है यहां हर कोई अपने वर्तमान से वाक़िफ है

ये जीवन कष्ट और कठिनाइयों से भरा है
इस भव सागर को पार करने कि मुस्कुराहट ही तरकीब है

अगर में तुमसे बिछड़ जाऊ तो क्या मुझे याद करोगी?

अगर में तुमसे बिछड़ जाऊ तो क्या मुझे याद करोगी?
बेफिक्र सी हो किस्मत का खेल समझ लोगी या
मुझसे दुबारा मिलने की खुदा से फरियाद करोगी?

वो किसी मनचली की तरह मुझे मिलने बुलाना
वो किसी भी वक़्त बेवक़्त मुझे फ़ोन कर सताना
वो कल सुबह की फ़िक्र किये बिना मुझे रातभर जगाना
अपने कहे अनकहे किस्से और गहरे राज़ मुझे बेजिझक सुनाना
तुम्हारी नादानियों से जब तंग आ जाता हूँ तो मुझे मनाना
जब किसी मुसीबत में होता हूँ तब मुझे गले से लगाना
तुम्हारी गोदी में सिर रखता हूँ तो प्यार से थपथपाना
क्या मेरे बाद भी किसी और के साथ करोगी?
अगर में तुमसे बिछड़ जाऊ तो क्या मुझे याद करोगी?
बेफिक्र सी हो किस्मत का खेल समझ लोगी या
मुझसे दुबारा मिलने की खुदा से फरियाद करोगी?

जैसे मेरी जिंदगी में तुम खुशियो की बहार बनके आयी
जाने पहचाने चेहरो के बीच जैसे कोई गुमनाम बनके आयी
मेरी सुनी पड़ी जिंदगी में खुशनुमा शाम बनके आयी
बिछड़ चुका था खुद से ही मैं, तू मेरा नाम बनके आयी
मेरी इस बेकाम सी जिंदगी में मेरा इनाम बनके आयी
लाख मुद्दतो के बाद तू खुदा का पैगाम बनके आयी
क्या मेरे बाद भी किसी और कि जिंदगी ऐसे ही आबाद करोगी?
अगर में तुमसे बिछड़ जाऊ तो क्या मुझे याद करोगी?
बेफिक्र सी हो किस्मत का खेल समझ लोगी या
मुझसे दुबारा मिलने की खुदा से फरियाद करोगी?

अच्छा लगता था

अच्छा लगता था
सुबह दादाजी के साथ दूर तक सैर पर जाना
दिन में आंगन में लगे घने बरगद के पेड़ की छाँव में सोना
शाम को लकड़ी के चूल्हे पर सिकी गरम रोटियां खाना
और रात को दादी की लोरिया सुनते हुए सो जाना

अच्छा लगता था
बस्ता कंधे पर लटका कर स्कूल को जाना
सबसे आगे बैठकर सबसे ज्यादा मस्ती करना
स्कूल खत्म होते ही दोस्तो के साथ तफरी पर निकल जाना
और किले की छत पर बैठकर ढलते हुए सूरज को ताकना

अच्छा लगता था
गर्मी की छुट्टी में मामा के घर जाना
बरसात में स्कूल में सबसे अच्छी छतरी की होड़ लगाना
सर्दी में अलाव के पास बैठकर दादी से कहानियाँ सुनना
और बसंत में पतंगबाजी और गिल्ली डंडा खेलना

अच्छा लगता था
तालाब में कूद कूदकर नहाना
बैलगाड़ी के पीछे बैठकर कहीं भी चल देना
खेलते खेलते सुबह से शाम हो जाना
और घर पहुँच कर मम्मी से डांट खाना

और अब अच्छा नहीं लगता है
सुबह को बेमन से काम पर निकल जाना
दिनभर फीकी मुस्कान के साथ बसर करना
शाम को खिड़की से ही सूर्यास्त देखना
और रोज रात की यही सब सोचते सोचते सो जाना

किस हद तक चाहू में तुझे

किस हद तक चाहू में तुझे
फूलो की कलियों में तू दिखती
रातो की गलियो में तू दिखती
सुनसान सड़क के किनारो पर तू दिखती
जहाँ कदम वहाँ निशानों में तू दिखती
रोशनी की चमकाहट में तू दिखती
जहाँ नजर वहाँ बाहें फेलाए तू दिखती
मेरे दिन और रातो में तू दिखती
मेरे ख्वाबो और खयालो में भी तू ही दिखती

जहाँ भी हो, यादों में हो

जहाँ भी हो, यादों में हो
ख्वाबो में हो, खयालो में हो
मेरे दिन में हो, रातो में हो
सवालो में हो, जवाबो में हो
मेरे हर सफर के रास्तों में हो
उस सफर में हुई बातो में हो
मेरी खाई हुई कसमो में हो
रिवाजो में हो, रस्मो में हो
मेरी चुनी हुई हर राहो में हो 
हर लिखी हुई किताबो में हो
जहाँ भी हो, यादों में हो
उम्मीद है एक दिन मेरी बाहो में हो

लिख दु कोरे कागज पर या ख्वाबो में लाकर तुम्हे देखु

लिख दु कोरे कागज पर या ख्वाबो में लाकर तुम्हे देखु
तुम इतनी खूबसूरत हो कि सामने बिठाकर तुम्हे देखु

मत जाओ मुझे छोड़कर, दूर तुमसे एक पल रहा ना जाये
आओ तुम्हे आघोष में लू कि बाहो में भरकर तुम्हे देखु

रुक जाओ, तुम मत जाओ, क्यों तुम रुक नही सकती
अच्छा! कुछ पल तो यहाँ बैठो कि जी भरकर तुम्हे देखु

दूर मुझसे तुम जा रही हो, यूँ दिल बैचेनी में धड़क रहा है
आँसू मेरे अविरल बह रहे कि आँख भिगोकर तुम्हे देखु

अंधेरी रातो में

अंधेरी रातो में
नींद से ओझल आँखों से
अनंत आकाश को
झरोखे की दहलीज़ से देखना
कुछ तो बात जरूर है
उन आँखों में कुछ कहानी तो जरूर है
जो लबो पर आके ठहरी हुई है
पर कोई है नहीं लायक शायद
उस कहानी को सुनने के लिए
इसलिए तुम अकेले
अंधेरी रातो में
नींद से ओझल आँखों से
अनंत आकाश को
एकटक बिन पलक झपकाए
उस अनजान शख्स से
जो तुम्हारी कल्पनाओ में
सजीव बन तुम्हारे पास बैठा है
बाते किये जा रहे हों
और बिन होंठ हिलाये
कई बातें कह रहे हो
और अंदर ही अंदर
अपने आप से भी कह रहे हो
काश!!! ये काल्पनिक इंसान
सच मे मेरे पास बैठा होता
तो मैं अपना दिल खोल के
उसके पास रख देता
पर अब बस
अंधेरी रातो में
नींद से ओझल आँखों से
अनंत आकाश को
झरोखे की दहलीज़ से देख रहे हो

ये वक़्त बेवक़्त होती बरसातें

ये वक़्त बेवक़्त होती बरसातें
और हर एक बूंद में तुम्हारी याद आना
यह कोई संयोग तो नहीं है
कुछ तो बात जरूर है जो
मेरा दिल मुझे नहीं बता रहा
जो मेरा मन चाहता है सुनने को
शायद मैं जानता हूँ
शायद ये तुम्हारे लिए मेरा प्यार है जो
बारिश की बूँदों में मुझे दिख रहा है
वो जब बारिश की बूंदे मेरी खिड़की पर
यूँ फिसलती है तो मेरा दिल भी फिसल जाता है
वो जब बारिश की बूंदे आवाज करती है तो
वो आवाज मुझे तुम्हारी आवाज सी मधुर लगती है
वो जब बारिश की बूंदे एक साथ मिल जाती है तो
उस छोटे से सरोवर में तुम्हारा ही अक्स ढूंढता हूँ
शायद ये तुम्हारे लिए मेरा प्यार है जो
बारिश की बूँदों में मुझे दिख रहा है

ये बारिश का मौसम भी बिल्कुल तुम्हारी तरह है
तुम्हारी ही तरह ये भी रूठ जाता है कई बार मुझसे
और फिर बारिश बंद हो जाती है
फिर मैं घण्टो इंतजार करता हूँ रहता हूँ कि
बारिश फिर से शुरू होगी और मैं इन बारिश की बूँदों में फिर से खो जाऊँगा जैसे
तुम्हारी आँखों मे, तुम्हारी आवाज में खो जाता हूँ
तुम्हारी ही तरह बारिश का मौसम भी मुझे रातभर सोने नही देता है
रातभर मैं बारिश की आवाज में इस कदर खोया रहता हूँ जैसे तुमसे बात करते वक़्त खो जाता हूँ

और फिर कुछ दिनों बाद ये मौसम भी उसी तरह चला जाता है जैसे तुम मुझसे दूर चली गयी थी
धीरे धीरे वक़्त के साथ आई हरयाली पतझड़ में बदल जाती है
और फिर से बारिश का इंतजार करती रहती है

परिचय

कठोर भी हूँ, नरम भी हूँ
स्वभाव से गरम भी हूँ
आजमा के देख चरित्र को
आँखों में लिए शर्म भी हूँ
मैं तेज धूप में खड़ा
प्रचंड ताप से लड़ा
मुश्किलो के आगे मैं
यूँ सीना तान के अड़ा
सीने में मेरे दिल भी है
चेतनापूर्ण मन भी है
संघर्ष भरे जीवन के लिए
क्षमतापूर्ण तन भी है
माँ बाप का आशीर्वाद है
रिश्ते मेरे सब पाक है
मुसीबत में जो पड़ जाऊ
दोस्तो का भी साथ है
अकेला ही चला था मैं
मंजिल के पीछे पड़ा था मैं
दूर तलक अंधेरा था
सुनसान सड़क पे खड़ा था मैं
मशाल हाथ में लिए
ज्वाला सीने में लिए
बढ़ चला अंधेरे को चीरता
लक्ष्य आँखों में लिए
हूँ महादेव का भक्त मैं
खड़ा कठोर वक़्त में
बाहर से दिखता हूँ शिथिल
अंदर से अभी भी सख्त मैं
खामोश हूँ, चुपचाप हूँ
दबा हुआ जज्बात हूँ
जो बयां कुछ करना हो
मैं तेज़ धार तलवार हूँ
ना बोलना भी नाइंसाफी है
कुछ गलती हो तो माफी है
अच्छा अब बस हुआ
इतना परिचय काफी है

तुझे मुझसे इतनी नफ़रत है कि बर्बाद हो जाऊ

तुझे मुझसे इतनी नफ़रत है कि बर्बाद हो जाऊ
बर्बादी के बहाने ही सही, मैं तुझे याद तो आऊ

इतना मत सोचना मुझसे इंतकाम के बारे मे
कही यादों मे तेरी मैं आबाद ना हो जाऊ

तेरा जिक्र मेरी कलम से निकले हर लफ्ज़ मे होता है
काश तेरी शायरी मे मैं भी इरशाद हो जाऊ

इतना भी मत लिख देना मेरे बारे मे कही
कही तेरे हर लफ्ज़ की मैं बुनियाद ना हो जाऊ

बेतरतीब पड़ी मेज़ पर किताबे

बेतरतीब पड़ी मेज़ पर किताबे
पेंसिल किताब के बीच दबी हुई
पंखा घूम रहा अनवरत
हवा से पन्ने लहरा रहे
एकटक देख रहा है मंगल
ध्यान कही और है मंगल का
शायद कुछ सोच रहा है
शायद नया शेर या नई नज़्म कोई
शायद उसकी याद में खोया है
पर कब तक, अब बस हुआ
कला की कलम को विराम देता है
बेतरतीब पड़ी किताबों को सहजता है
वापस पेंसिल वाला पेज खोलता है
और फिरसे पढ़ने बैठ जाता है

ना चाहते हुए भी मुस्काये बैठा हूँ

कुछ बाते जहन में दबाये बैठा हूँ
ना चाहते हुए भी मुस्काये बैठा हूँ

असंतोष है कुछ कर्मो का मुझे
दिन रात वही सोचता रहता हूँ
काश! ऐसा किया होता
काश! वैसा किया होता
ऐसे कुछ विचार दोहराये बैठा हूँ

उजाले की कुछ गलतियाँ
सोच सोच कर रातों में
घूम फिर कर ख्वाबों में
में दिन का चैन और रातों का सुकून
दोनों अनमोल गवाए बैठा हू

बचपन की कुछ गलतियाँ
बाँकपन की कुछ गलतियाँ
और कुछ घिनोने राज अपने
अंधेरी तिजोरी में दबाये बैठा हूँ

बहुत से जाने-अनजाने, दोस्त-दुश्मन
जीवन में आये और खास हो गए
सबको वो अंधेरी तिजोरी दिखाई
पर अभी भी उसकी चाबी छुपाये बैठा हूँ

जुबां पर कई बार लाकर
में वो बातें सीने में दबाये बैठा हूँ

और अब तो शुभचिंतक भी बैगाना लगता है
सामने हँसने वालो को पीठ पीछे अजमाए बैठा हूँ

ऐसी बहुत सी बातें में सबसे छुपाये बैठा हूँ
दुःख होता है जब भी उनके बारे में सोचता हूँ
पर क्या करू, ना चाहते हुए भी मुस्काये बैठा हूँ

ये शायद मुमकिन नहीं

इस जीवन मे तुम मुझसे मिल पाओ
ये शायद मुमकिन नहीं
इस जीवन मे मैं खुद से मिल पाऊ
ये शायद मुमकिन नहीं

हर्फ़ दर हर्फ़ खोल रहा हूँ पन्ने अपने
और देख रहा हूँ दफ़न जो राज है मेरे
भावनाये, अहसास, हुनर, लतीफ़े
क्या क्या नहीं लिखा मटमैले पन्नो में
कभी मुस्कुराता हूँ
कभी रोने लगता हूँ
कभी चीखता - चिल्लाता हूँ
कभी यादों में खोने लगता हूँ
कभी डर जाता हूँ
तो कभी चौक जाता हूँ

कितने पन्ने तो खाली पड़े है
या शायद वही सबसे ज्यादा भरे है, किसको पता?
कोशिश कर रहा हूँ उनको पढ़ने की
और उम्मीद है इस जीवन मे उनको पढ़ लूँगा
अभी नही तो शायद जीवन की आखिरी पड़ाव में ही सही
पर उम्मीद है शायद पढ़ लूँगा

पर आप निराश मत होना
अगर मैं इस जीवन मे खुद से मिल पाया
तो आपको जरूर रूबरू करूँगा

पर
इस जीवन मे तुम मुझसे मिल पाओ
ये शायद मुमकिन नहीं
इस जीवन मे मैं खुद से मिल पाऊ
ये शायद मुमकिन नहीं

किसी गुमनाम को ख्वाबो में ला मैं यूँ याद करता रहा

किसी गुमनाम को ख्वाबो में ला मैं यूँ याद करता रहा
जीवन अपना संग उसके बिताने के सपने बुनता रहा

नाम पता न शक्ल सूरत कुछ भी न ज्ञात मुझको
फिर भी मैं तन्हाई में बैठा आवाज उसकी सुनता रहा

कही नींद से जाग न जाऊ और हसीन ख्वाब ये टूट न जाये
कही साथ उसका न खो दु इसलिए मैं नींद में भी डरता रहा

सूरत से अनजान उसकी तस्वीर में उसको कैसे सजाऊ
तस्वीर उसकी शब्दो से मेरे कविता में मेरी रचता रहा

प्रियतम मेरी लौट आओ तुम

थक गया हूँ झूट बोल बोलकर
अब और नही बोला जाता
प्रियतम मेरी लौट आओ तुम
अब दर्द नही झेला जाता

फीकी मुस्कान अब चेहरे पर
कब तक और रखनी पड़ेगी
चिंतन लकीर अब ललाट की
कब तक और ढकनी पड़ेगी
कब तक भौंहे तान तान
मैं आँसू कैद कर पाउँगा
कब तक रातें जाग जाग
मैं तेरी याद भुलाऊँगा
जिस खेल में मैं हर रोज़ हारू
वो खेल नही खेला जाता
प्रियतम मेरी लौट आओ तुम
अब दर्द नही झेला जाता

पूजा पाठ ध्यान अध्यात्म
सब करके मैंने छोड़ दिये
चाहे अनचाहे ख्वाब तेरे
मैन नींदों से मोड़ दिए
कम से कम अब मन को मैं
ये विश्वास रोज़ दिलाता हूँ
ये रात आखिरी जब याद तू आयी
ये कसमे रोज़ मैं खाता हूँ
रूह से कब तक सच छुपाऊ
अब झूट नही बोला जाता
प्रियतम मेरी लौट आओ तुम
अब दर्द नही झेला जाता

दोस्त मेरे जब हाल पूछते
सबको मदमस्त दिखलाता हूँ
ज़हन में दर्द अनेक भरे है
हँस के सारे छुपाता हूँ
वो जानता है मुझे बचपन से
उससे मिलने कैसे ना जाऊ
यार मेरा पहचान गया
अब उससे सच कैसे छुपाऊ
आँख मिलाके झूट बोलता
तो मन मेरा मैला जाता
प्रियतम मेरी लौट आओ तुम
अब दर्द नही झेला जाता

वसंत से मैं पतझड़ तक
दरख्तों को ताकता रहा
कलेजे में जो झलक तुम्हारी
मन ही मन भाँपता रहा
हरे से पत्तियाँ पीली हो गयी
इंतजार तुम्हारा अब भी है
एक दिन जरूर तुम आओगी
विश्वास मुझे ये अब भी है
राह तुम्हारी देख रहा हूँ
अब और नही देखा जाता
प्रियतम मेरी लौट आओ तुम
अब दर्द नही झेला जाता

रोशनी

अंधेरे कमरे में
झरोखे से आती रोशनी की किरण

मेरा चंचल मन
देखता है
सोचता है
पूछता है
क्या है ये जो
जगमगा रहा है
छटा रहा है
अंधेरे को
भर रहा है रोशनी
फैला रहा है उजाला
दिखा रहा है अनदेखा

सवाल अनगिनत
जन्म ले रहे
पूछ रहा है मन मेरा
क्या है ये
क्यों है ये
कहा से आया कैसे आया

जिज्ञासा की लहर
और प्रबल हो चली
नए दृष्टिकोण
आकार ले रहे
सोचने समझने की शक्ति
सवालो के जवाब दे रही
बंद दरवाजे खुल रहे
नए आयाम मिल रहे

एक रास्ता
आगे बढ़ने का
रोशनी के उद्गम को
ढूंढ निकलने का
मिल गया
जज्बा दौड़ उठा
लहू मे नई ऊर्जा
तैर गयी
उठ खड़ा हुआ
चल पड़ा
और फिर कभी नही रुका

Thursday, 1 July 2021

Local Languages: On the verge of extinction

Dear readers,

I was in meeting with one of my client and suddenly he started to talk in marathi with his coulleague and one thought lead me to write a mail to my Mama, Sunil Garg. Below is the excerpt of the mail:


On Wed, Sep 18, 2019, 3:48 PM Adarsh Mangal <adarsh17mangal@gmail.com> wrote:
Dear Mama,


Below is the draft of my new post to my blog. Please review it and provide your valuable suggestions and comments.

Hi,

It's been 10 months I am here in mumbai and what I observed is people prefer to talk in their local tongue than national language.

I meet various marathi and gujrati people and whenever they meet their known, they started to talk in marathi or gujrati, whatever the local language.

When I was kid and living in my hometown in Hadoti region of Rajasthan, I tought to talk in hindi rather than using my local language, Hadoti. The reason they gave is people will assume you as a villager but now when I see marathi people talking in marathi in big corporates, I am very sure that no one is thinking of them being villager and they proudly say that they are maharastrian people.

By the time, the Hadoti language is getting vulnerable (not at extreme level) and when I meet childrens from my region, they even don't understand the hadoti.

There is a sudden need to protect and spread the extinction of local languages across India because D. H. Lawrence (renowned writer) said "When people are enslaved, as long as they hold fast to their language, it is as if they had key to their prison."

It's a humble request to you that please don't make our local language extinct. It is okay to hold fast in Hindi or English but to make connections and networking it is very much necessary to speak and understand the local language.

Regards,
Adarsh Mangal


Sunil Garg Baran
10:49 AM (3 hours ago)
to me

प्यारे भांजे
भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम होती है
चाहे वो कोई सी भी हो
व्यक्ति अभिव्यक्ति जन्म के बाद अपने आस पास के वातावरण से सीखता है
जिसके लिए उसे किसी स्कूल जाने की जरूरत नही होती । रही बात हाड़ौती की तो वर्तमान में एक सवाल स्वयं से पूछना की क्या आपके बचपन मे आपसे हाड़ौती में बात की जाती थी या हिंदी में
जब हमारे आस पास का वातावरण हमारी क्षेत्रीय भाषा के सम्मान के प्रति उदासीन हो तो दूसरे लोग क्यों उसका सम्मान करेंगे।
रही बात गुजराती ओर मराठियों की तो वो अपनी भाषा के प्रति जागरूक भी है और कट्टर भी है दूसरा वहाँ के लोकल लीडर भी उनको भाषा को लेकर सपोर्ट करते है ।
गुजरात और महाराष्ट्र अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति कट्टर इसलिए है क्योंकि इन राज्यो में बाहर के बहुत लोग आकर के रहते है जो कि इन राज्यो की संस्कृति में नही समझते ।
ओर बाहर से आया व्यक्ति अपनी संस्कृति और विचारधारा को लेकर आता है और बहुत सी चीजो को अपने हिसाब से बदलने की कोशिश करता है ।
जिससे conflict पैदा होता है और लोकल लोग अपने को असहज भी महसूस करते है और खतरा भी महसूस करते है ।
शायद आपको मेरे कम शब्दों में सार समझ मे आ गया होगा ।


Once there was a cultural function going on in my village of a certain scheduled caste and the whole function was hosted in Hadoti language. The following incident lead my thoughts to conclude that its about how our elders want us to talk and in which language. How they want us to present ourselves in front of others. It might be due to demographic combination of a certain region. People with large majority holds their roots with their culture and language while people with minority wants to stand out of them and make a special identity between them.

The Aftermath

"I think it's not working anymore. We should breakup and it's not you it's me"

We all laughed when Zakir Khan said these lines in his stand-up special and have you ever thought what were the thoughts of the girl and boy while saying these heartbroken lines or after breakup? Let me tell you!

Whenever there is nothing going right in any relationship, once this thought always come in mind that "I should breakup because it's not working anymore" and after every bad moment this thought gets heavier and heavier and after sometime we decide to finally breakup because we think it's the best option.

It may be normal for the casual relationship holders who has similar relationships that lasts maximum upto 1 years but what happened with the couple who is in relationship for very long time, say 5 years.

Being this much long in a relationship, their life started revolving around each other.
◆ Their morning starts together and they sleep together.
◆ They roam together and they eat together.
◆ They praise together and they hate together.

Suddenly, after breakup, everything seems like incomplete and the togetherness converts into the loneliness.
◆ Morning doesn't happens without the good morning wish and night becomes sleepless.
◆ The road full with people seems like empty and food doesn't satisfies hungriness.
◆ Things look good and bad but heart becomes feeling less.

For sometime, until someone else becomes that close or we found someone to share our heart out, the life feels like food without salt, like everything is there but something important is missing.

Saturday, 24 April 2021

Past, Present and Future

There is always a fight between past, present and future.

Thinking too much about past actions leads to overthinking about present course of action and this overthinking also includes the analysis of different future results due to different present actions.

I know that past actions influence the future result of present action but if you do something wrong in order to compensate the wrong past actions then the future consequences due to consolidated wrong past and present actions can be worst.

That's why it's important to not think about past actions but to do whatever is correct in present scenario and try to compensate the wrong past actions with right present actions.

कभी शौक से हमारे महखाने में वक्त गुजारने आना

कभी शौक से हमारे महखाने में वक्त गुजारने आना थोड़ी शराब पीकर खराब दिन की सूरत सुधारने आना मिजाज़ कुछ उखड़ा उखड़ा रहता है तुम्हारा अपनो से रू...