Saturday, 9 October 2021

अच्छा लगता था

अच्छा लगता था
सुबह दादाजी के साथ दूर तक सैर पर जाना
दिन में आंगन में लगे घने बरगद के पेड़ की छाँव में सोना
शाम को लकड़ी के चूल्हे पर सिकी गरम रोटियां खाना
और रात को दादी की लोरिया सुनते हुए सो जाना

अच्छा लगता था
बस्ता कंधे पर लटका कर स्कूल को जाना
सबसे आगे बैठकर सबसे ज्यादा मस्ती करना
स्कूल खत्म होते ही दोस्तो के साथ तफरी पर निकल जाना
और किले की छत पर बैठकर ढलते हुए सूरज को ताकना

अच्छा लगता था
गर्मी की छुट्टी में मामा के घर जाना
बरसात में स्कूल में सबसे अच्छी छतरी की होड़ लगाना
सर्दी में अलाव के पास बैठकर दादी से कहानियाँ सुनना
और बसंत में पतंगबाजी और गिल्ली डंडा खेलना

अच्छा लगता था
तालाब में कूद कूदकर नहाना
बैलगाड़ी के पीछे बैठकर कहीं भी चल देना
खेलते खेलते सुबह से शाम हो जाना
और घर पहुँच कर मम्मी से डांट खाना

और अब अच्छा नहीं लगता है
सुबह को बेमन से काम पर निकल जाना
दिनभर फीकी मुस्कान के साथ बसर करना
शाम को खिड़की से ही सूर्यास्त देखना
और रोज रात की यही सब सोचते सोचते सो जाना

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