Saturday, 9 October 2021

ये शायद मुमकिन नहीं

इस जीवन मे तुम मुझसे मिल पाओ
ये शायद मुमकिन नहीं
इस जीवन मे मैं खुद से मिल पाऊ
ये शायद मुमकिन नहीं

हर्फ़ दर हर्फ़ खोल रहा हूँ पन्ने अपने
और देख रहा हूँ दफ़न जो राज है मेरे
भावनाये, अहसास, हुनर, लतीफ़े
क्या क्या नहीं लिखा मटमैले पन्नो में
कभी मुस्कुराता हूँ
कभी रोने लगता हूँ
कभी चीखता - चिल्लाता हूँ
कभी यादों में खोने लगता हूँ
कभी डर जाता हूँ
तो कभी चौक जाता हूँ

कितने पन्ने तो खाली पड़े है
या शायद वही सबसे ज्यादा भरे है, किसको पता?
कोशिश कर रहा हूँ उनको पढ़ने की
और उम्मीद है इस जीवन मे उनको पढ़ लूँगा
अभी नही तो शायद जीवन की आखिरी पड़ाव में ही सही
पर उम्मीद है शायद पढ़ लूँगा

पर आप निराश मत होना
अगर मैं इस जीवन मे खुद से मिल पाया
तो आपको जरूर रूबरू करूँगा

पर
इस जीवन मे तुम मुझसे मिल पाओ
ये शायद मुमकिन नहीं
इस जीवन मे मैं खुद से मिल पाऊ
ये शायद मुमकिन नहीं

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