Saturday, 9 October 2021

रोशनी

अंधेरे कमरे में
झरोखे से आती रोशनी की किरण

मेरा चंचल मन
देखता है
सोचता है
पूछता है
क्या है ये जो
जगमगा रहा है
छटा रहा है
अंधेरे को
भर रहा है रोशनी
फैला रहा है उजाला
दिखा रहा है अनदेखा

सवाल अनगिनत
जन्म ले रहे
पूछ रहा है मन मेरा
क्या है ये
क्यों है ये
कहा से आया कैसे आया

जिज्ञासा की लहर
और प्रबल हो चली
नए दृष्टिकोण
आकार ले रहे
सोचने समझने की शक्ति
सवालो के जवाब दे रही
बंद दरवाजे खुल रहे
नए आयाम मिल रहे

एक रास्ता
आगे बढ़ने का
रोशनी के उद्गम को
ढूंढ निकलने का
मिल गया
जज्बा दौड़ उठा
लहू मे नई ऊर्जा
तैर गयी
उठ खड़ा हुआ
चल पड़ा
और फिर कभी नही रुका

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