Saturday, 9 October 2021

ना चाहते हुए भी मुस्काये बैठा हूँ

कुछ बाते जहन में दबाये बैठा हूँ
ना चाहते हुए भी मुस्काये बैठा हूँ

असंतोष है कुछ कर्मो का मुझे
दिन रात वही सोचता रहता हूँ
काश! ऐसा किया होता
काश! वैसा किया होता
ऐसे कुछ विचार दोहराये बैठा हूँ

उजाले की कुछ गलतियाँ
सोच सोच कर रातों में
घूम फिर कर ख्वाबों में
में दिन का चैन और रातों का सुकून
दोनों अनमोल गवाए बैठा हू

बचपन की कुछ गलतियाँ
बाँकपन की कुछ गलतियाँ
और कुछ घिनोने राज अपने
अंधेरी तिजोरी में दबाये बैठा हूँ

बहुत से जाने-अनजाने, दोस्त-दुश्मन
जीवन में आये और खास हो गए
सबको वो अंधेरी तिजोरी दिखाई
पर अभी भी उसकी चाबी छुपाये बैठा हूँ

जुबां पर कई बार लाकर
में वो बातें सीने में दबाये बैठा हूँ

और अब तो शुभचिंतक भी बैगाना लगता है
सामने हँसने वालो को पीठ पीछे अजमाए बैठा हूँ

ऐसी बहुत सी बातें में सबसे छुपाये बैठा हूँ
दुःख होता है जब भी उनके बारे में सोचता हूँ
पर क्या करू, ना चाहते हुए भी मुस्काये बैठा हूँ

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