Wednesday, 1 March 2023

ख़्वाहिश है तेरे प्यार में बदनाम हो जाउ

ख़्वाहिश है तेरे प्यार में बदनाम हो जाउ
जो तू ना मिले तो मैं गुमनाम हो जाउ

इक नज़र जो तू देख ले इस नाचीज़ को
तेरी आँखों से छलकता जाम हो जाउ

सूरत तेरी कुछ इस तरह निहारता रहू
यहीं बैठे बैठे सुबह से शाम हो जाउ

जो गुज़ारनी पड़े तेरी ख़्वाहिश में जिंदगी
तो मैं खुशी खुशी नाकाम हो जाउ

Monday, 16 May 2022

अप्सरा

कान में झुमका
होंठो पे लाली
और छः गज़ के कपड़े में लिपटा उसका बदन
जैसे अप्सरा सी वो
मुस्कान लिए चली आ रही
कमर को इस तरह मटकाते
कि उसके हर कदम से
मेरे दिल की धड़कन बढ़ रही
और जैसे जैसे वो पास आई
उसके बदन से आती
भीनी भीनी खुशबू
मुझे मदहोश किये जा रही थी
वो और पास आई
और कुछ ऐसे कयामत ढाई
की बस मेरा मुँह खुला रह गया
और वो हँसते हुए निकल गयी

Sunday, 1 May 2022

गर अमावस के चाँद को नहीं देखा तो क्या देखा

गर अमावस के चाँद को नहीं देखा तो क्या देखा
उसके जाने के बाद रास्ता नहीं देखा तो क्या देखा

मतभेद, कहासुनी, रूठना-मनाना तो कहाँ नहीं होता
उसके गुस्से के पीछे प्यार नहीं देखा तो क्या देखा

बिछड़ गए क्योंकि विचार, ख़यालात, तौर-तरीके अलग थे
बस सूरत देखी और स्वभाव नहीं देखा तो क्या देखा 

भले ही गुज़ार आये उस तवायफ़ के साथ रात तुम
सब कुछ देखा पर आँखों में नहीं देखा तो क्या देखा

धर्मवीर भारती की गुनाहों का देवता की समीक्षा

नमस्कार मित्रो,

हाल ही में मैंने धर्मवीर भारती जी द्वारा लिखी गयी गुनाहों का देवता पढ़ी और दिल के जज़्बातों को छिन्न भिन्न कर देने वाली कहानी है ये। ये पढ़ने के बाद यही उम्मीद करता हु की मैं सुधा की तरह पवित्र, बिनती की तरह निःस्वार्थ, गेसू की तरह निष्ठावान और पम्मी की तरह सुलझा हुआ बन पाउ जीवन मे। दूसरे और तीसरे खंड में रह रह कर सुधा मुझे जॉन एलिया की याद दिलाती रही (किस तरह ये किसी और दिन बताऊँगा)। चन्दर की तरह अस्पष्ट और भावुक हो जाना चाहता हु पर किसी के दिल ओ दिमाग को ठेस नही पहुचाना चाहता।

कही न कही ये कहानी मुझे अपनी सी लगने लगी क्योंकि मैंने भी चन्दर ही कि तरह उस लड़की को अस्वीकार दिया था जो मुझसे बेइंतेहा मोहब्बत करती थी। कारण ये था कि मैं उसके प्यार के लायक नही था और ना ही उसको बदले में वो प्यार और स्नेह दे पा रहा था। दोषी और स्वार्थी समझने लगा था खुदको।

धर्मवीर भारती जी ने प्रेम के सब पहलुओ को बहुत ही सुंदर तरीके से दिखाया है चाहे वो पवित्रता हो, वासना हो, सेवाभाव हो, नफरत हो, ग्लानि हो या और जितने भी अनगिनत मायने हो सकते है प्रेम के।

चाहे ये कहानी कितनी ही पुरानी हो पर आज भी प्रेम के अंतर्द्वंद को बहुत सटीक तरीके से प्रस्तुत करती है।

मैं नही जानता धर्मवीर भारती जी के मन मे क्या चल रहा होगा जब उन्होंने ये कहानी लिखी पर शायद ये कहानी लिखते समय उनकी मनोदशा भी चन्दर की तरह ही रही होगी जो कि जैसे जैसे कहानी बढ़ती गयी, पहले पम्मी और फिर बर्टी की मनोदशा में तब्दील हो गयी और अंततः गेसू की मनोदशा के साथ उन्होंने इस कहानी का उपसंहार किया।

हर हिंदी साहित्य प्रेमी को यह उपन्यास जरुर ‌पढ़ना चाहिये।

धन्यवाद।

Saturday, 12 February 2022

अब कहने को बचा ही क्या

अब कहने को बचा ही क्या
जो कहना था वो कह चुके

अब तो रोया भी नही जाता
जितने आँसू थे वो बह चुके

तुम तो अब और दर्द ना दो
हम बेइंतेहा दर्द सह चुके

अब कहने को बचा ही क्या
जो कहना था वो कह चुके

Tuesday, 9 November 2021

बड़े अनुभवी इंसान लगते हो

बड़े अनुभवी इंसान लगते हो
होंठो की शबनम भरी मुस्कान के पीछे छुपी वो तन्हाई की शुष्कता को भली भांति भाँप लेते हो

ये हुनर जन्मजात है तुम्हारा
या फिर तुम भी ऐसी किसी तन्हाई भरे अंधेरे कमरे के वासी हो
जहाँ तुम हो
कुछ पुरानी यादें है
कुछ अनसुने किस्से है
कुछ गहरे राज़ है
और बेइंतेहा परिस्तिथियों के परिदृश्य है
जिनकी सोच में तुम डूबे रहते हो

बड़े अनुभवी इंसान लगते हो

Saturday, 23 October 2021

साक़ी आओ और पिलाओ

साक़ी आओ
और पिलाओ
वो जाम
जो छलकता
तुम्हारे हाथ मे
और साथ मे
तुम्हारी मतवाली चाल
बलखाती तुम्हारी कमर
और लहराते काले बाल
होंठो में मध्धम हंसी
आँखों मे भरी मस्ती
और अंधेरे में चमकते तुम्हारे गाल

साक़ी आओ
और पिलाओ
वो जाम
जो छलकता
तुम्हारे हाथ मे
और मत तड़पाओ
क्योंकि तलब लगी है पीने की
वो जो दवा है मेरे जीने की
और जलन मची है सीने में
क्या मजा आएगा पीने में
जब तुम लाओगी जाम का प्याला
धन्य होगी ये मधुशाला
दिल गाएगा जोर जोर से
प्रेम प्याला प्रेम प्याला

साक़ी आओ
और पिलाओ
वो जाम
जो छलकता
तुम्हारे हाथ मे
और मत तुम रोको आज मुझे
मत होने दो ये अहसास मुझे
की कोई नही इस दुनिया मे
जो समझ सके ये दर्द मेरा
जो साथ मे आके बैठे दो पल
और थाम सके ये हाथ मेरा

साक़ी आओ
और पिलाओ
वो जाम
जो छलकता
तुम्हारे हाथ मे
और थाम के मेरे हाथ को
मत रोको मेरे जज़्बात को
शैतान को
हैवान को
मार जाने दो अंदर के इंसान को
क्योंकि अब नही बचा है कोई भी कारण
मैं जी रहा हु बिन कोई कारण
भटक रहा हु शुबह शाम
दर बदर और सूनी गलियाँ
ढूंढने को बस एक ही कारण
जीने का मेरे एक कारण

साक़ी आओ
और पिलाओ
वो जाम
जो छलकता
तुम्हारे हाथ मे
और आज पिलाओ मुझे तुम इतना
जान बचे ना मुझमे जितना
मर जाऊँगा
मिट जाऊँगा
काम तमाम मैं कर जाऊँगा
और आखरी बार पिलाओ साक़ी
अब मुझमे जान बची ना बाकी
वो प्याला होंठ से मेरे मिला दो
मौत से मुझको आज मिला दो

कभी शौक से हमारे महखाने में वक्त गुजारने आना

कभी शौक से हमारे महखाने में वक्त गुजारने आना थोड़ी शराब पीकर खराब दिन की सूरत सुधारने आना मिजाज़ कुछ उखड़ा उखड़ा रहता है तुम्हारा अपनो से रू...