Saturday, 9 October 2021

जहाँ भी हो, यादों में हो

जहाँ भी हो, यादों में हो
ख्वाबो में हो, खयालो में हो
मेरे दिन में हो, रातो में हो
सवालो में हो, जवाबो में हो
मेरे हर सफर के रास्तों में हो
उस सफर में हुई बातो में हो
मेरी खाई हुई कसमो में हो
रिवाजो में हो, रस्मो में हो
मेरी चुनी हुई हर राहो में हो 
हर लिखी हुई किताबो में हो
जहाँ भी हो, यादों में हो
उम्मीद है एक दिन मेरी बाहो में हो

लिख दु कोरे कागज पर या ख्वाबो में लाकर तुम्हे देखु

लिख दु कोरे कागज पर या ख्वाबो में लाकर तुम्हे देखु
तुम इतनी खूबसूरत हो कि सामने बिठाकर तुम्हे देखु

मत जाओ मुझे छोड़कर, दूर तुमसे एक पल रहा ना जाये
आओ तुम्हे आघोष में लू कि बाहो में भरकर तुम्हे देखु

रुक जाओ, तुम मत जाओ, क्यों तुम रुक नही सकती
अच्छा! कुछ पल तो यहाँ बैठो कि जी भरकर तुम्हे देखु

दूर मुझसे तुम जा रही हो, यूँ दिल बैचेनी में धड़क रहा है
आँसू मेरे अविरल बह रहे कि आँख भिगोकर तुम्हे देखु

अंधेरी रातो में

अंधेरी रातो में
नींद से ओझल आँखों से
अनंत आकाश को
झरोखे की दहलीज़ से देखना
कुछ तो बात जरूर है
उन आँखों में कुछ कहानी तो जरूर है
जो लबो पर आके ठहरी हुई है
पर कोई है नहीं लायक शायद
उस कहानी को सुनने के लिए
इसलिए तुम अकेले
अंधेरी रातो में
नींद से ओझल आँखों से
अनंत आकाश को
एकटक बिन पलक झपकाए
उस अनजान शख्स से
जो तुम्हारी कल्पनाओ में
सजीव बन तुम्हारे पास बैठा है
बाते किये जा रहे हों
और बिन होंठ हिलाये
कई बातें कह रहे हो
और अंदर ही अंदर
अपने आप से भी कह रहे हो
काश!!! ये काल्पनिक इंसान
सच मे मेरे पास बैठा होता
तो मैं अपना दिल खोल के
उसके पास रख देता
पर अब बस
अंधेरी रातो में
नींद से ओझल आँखों से
अनंत आकाश को
झरोखे की दहलीज़ से देख रहे हो

ये वक़्त बेवक़्त होती बरसातें

ये वक़्त बेवक़्त होती बरसातें
और हर एक बूंद में तुम्हारी याद आना
यह कोई संयोग तो नहीं है
कुछ तो बात जरूर है जो
मेरा दिल मुझे नहीं बता रहा
जो मेरा मन चाहता है सुनने को
शायद मैं जानता हूँ
शायद ये तुम्हारे लिए मेरा प्यार है जो
बारिश की बूँदों में मुझे दिख रहा है
वो जब बारिश की बूंदे मेरी खिड़की पर
यूँ फिसलती है तो मेरा दिल भी फिसल जाता है
वो जब बारिश की बूंदे आवाज करती है तो
वो आवाज मुझे तुम्हारी आवाज सी मधुर लगती है
वो जब बारिश की बूंदे एक साथ मिल जाती है तो
उस छोटे से सरोवर में तुम्हारा ही अक्स ढूंढता हूँ
शायद ये तुम्हारे लिए मेरा प्यार है जो
बारिश की बूँदों में मुझे दिख रहा है

ये बारिश का मौसम भी बिल्कुल तुम्हारी तरह है
तुम्हारी ही तरह ये भी रूठ जाता है कई बार मुझसे
और फिर बारिश बंद हो जाती है
फिर मैं घण्टो इंतजार करता हूँ रहता हूँ कि
बारिश फिर से शुरू होगी और मैं इन बारिश की बूँदों में फिर से खो जाऊँगा जैसे
तुम्हारी आँखों मे, तुम्हारी आवाज में खो जाता हूँ
तुम्हारी ही तरह बारिश का मौसम भी मुझे रातभर सोने नही देता है
रातभर मैं बारिश की आवाज में इस कदर खोया रहता हूँ जैसे तुमसे बात करते वक़्त खो जाता हूँ

और फिर कुछ दिनों बाद ये मौसम भी उसी तरह चला जाता है जैसे तुम मुझसे दूर चली गयी थी
धीरे धीरे वक़्त के साथ आई हरयाली पतझड़ में बदल जाती है
और फिर से बारिश का इंतजार करती रहती है

परिचय

कठोर भी हूँ, नरम भी हूँ
स्वभाव से गरम भी हूँ
आजमा के देख चरित्र को
आँखों में लिए शर्म भी हूँ
मैं तेज धूप में खड़ा
प्रचंड ताप से लड़ा
मुश्किलो के आगे मैं
यूँ सीना तान के अड़ा
सीने में मेरे दिल भी है
चेतनापूर्ण मन भी है
संघर्ष भरे जीवन के लिए
क्षमतापूर्ण तन भी है
माँ बाप का आशीर्वाद है
रिश्ते मेरे सब पाक है
मुसीबत में जो पड़ जाऊ
दोस्तो का भी साथ है
अकेला ही चला था मैं
मंजिल के पीछे पड़ा था मैं
दूर तलक अंधेरा था
सुनसान सड़क पे खड़ा था मैं
मशाल हाथ में लिए
ज्वाला सीने में लिए
बढ़ चला अंधेरे को चीरता
लक्ष्य आँखों में लिए
हूँ महादेव का भक्त मैं
खड़ा कठोर वक़्त में
बाहर से दिखता हूँ शिथिल
अंदर से अभी भी सख्त मैं
खामोश हूँ, चुपचाप हूँ
दबा हुआ जज्बात हूँ
जो बयां कुछ करना हो
मैं तेज़ धार तलवार हूँ
ना बोलना भी नाइंसाफी है
कुछ गलती हो तो माफी है
अच्छा अब बस हुआ
इतना परिचय काफी है

तुझे मुझसे इतनी नफ़रत है कि बर्बाद हो जाऊ

तुझे मुझसे इतनी नफ़रत है कि बर्बाद हो जाऊ
बर्बादी के बहाने ही सही, मैं तुझे याद तो आऊ

इतना मत सोचना मुझसे इंतकाम के बारे मे
कही यादों मे तेरी मैं आबाद ना हो जाऊ

तेरा जिक्र मेरी कलम से निकले हर लफ्ज़ मे होता है
काश तेरी शायरी मे मैं भी इरशाद हो जाऊ

इतना भी मत लिख देना मेरे बारे मे कही
कही तेरे हर लफ्ज़ की मैं बुनियाद ना हो जाऊ

बेतरतीब पड़ी मेज़ पर किताबे

बेतरतीब पड़ी मेज़ पर किताबे
पेंसिल किताब के बीच दबी हुई
पंखा घूम रहा अनवरत
हवा से पन्ने लहरा रहे
एकटक देख रहा है मंगल
ध्यान कही और है मंगल का
शायद कुछ सोच रहा है
शायद नया शेर या नई नज़्म कोई
शायद उसकी याद में खोया है
पर कब तक, अब बस हुआ
कला की कलम को विराम देता है
बेतरतीब पड़ी किताबों को सहजता है
वापस पेंसिल वाला पेज खोलता है
और फिरसे पढ़ने बैठ जाता है

कभी शौक से हमारे महखाने में वक्त गुजारने आना

कभी शौक से हमारे महखाने में वक्त गुजारने आना थोड़ी शराब पीकर खराब दिन की सूरत सुधारने आना मिजाज़ कुछ उखड़ा उखड़ा रहता है तुम्हारा अपनो से रू...