Saturday, 9 October 2021

प्रियतम मेरी लौट आओ तुम

थक गया हूँ झूट बोल बोलकर
अब और नही बोला जाता
प्रियतम मेरी लौट आओ तुम
अब दर्द नही झेला जाता

फीकी मुस्कान अब चेहरे पर
कब तक और रखनी पड़ेगी
चिंतन लकीर अब ललाट की
कब तक और ढकनी पड़ेगी
कब तक भौंहे तान तान
मैं आँसू कैद कर पाउँगा
कब तक रातें जाग जाग
मैं तेरी याद भुलाऊँगा
जिस खेल में मैं हर रोज़ हारू
वो खेल नही खेला जाता
प्रियतम मेरी लौट आओ तुम
अब दर्द नही झेला जाता

पूजा पाठ ध्यान अध्यात्म
सब करके मैंने छोड़ दिये
चाहे अनचाहे ख्वाब तेरे
मैन नींदों से मोड़ दिए
कम से कम अब मन को मैं
ये विश्वास रोज़ दिलाता हूँ
ये रात आखिरी जब याद तू आयी
ये कसमे रोज़ मैं खाता हूँ
रूह से कब तक सच छुपाऊ
अब झूट नही बोला जाता
प्रियतम मेरी लौट आओ तुम
अब दर्द नही झेला जाता

दोस्त मेरे जब हाल पूछते
सबको मदमस्त दिखलाता हूँ
ज़हन में दर्द अनेक भरे है
हँस के सारे छुपाता हूँ
वो जानता है मुझे बचपन से
उससे मिलने कैसे ना जाऊ
यार मेरा पहचान गया
अब उससे सच कैसे छुपाऊ
आँख मिलाके झूट बोलता
तो मन मेरा मैला जाता
प्रियतम मेरी लौट आओ तुम
अब दर्द नही झेला जाता

वसंत से मैं पतझड़ तक
दरख्तों को ताकता रहा
कलेजे में जो झलक तुम्हारी
मन ही मन भाँपता रहा
हरे से पत्तियाँ पीली हो गयी
इंतजार तुम्हारा अब भी है
एक दिन जरूर तुम आओगी
विश्वास मुझे ये अब भी है
राह तुम्हारी देख रहा हूँ
अब और नही देखा जाता
प्रियतम मेरी लौट आओ तुम
अब दर्द नही झेला जाता

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