ये दुनिया भी कितनी अजीब है
अपना हो तो ठिक है
दूसरे का हो तो उसका नसीब है
यहाँ ना कोई किसी के करीब है
जात पात, भेद भाव, ऊंच नीच
यहां कोई अमीर है तो कोई गरीब है
हर तरफ जालसाजी और चालबाजी का दौर है
इस भीड़ में कुछ लोग ईमानदार और शरीफ है
भूत और भविष्य की बाते होती आई है और होती रहेगी
जरूरत है यहां हर कोई अपने वर्तमान से वाक़िफ है
ये जीवन कष्ट और कठिनाइयों से भरा है
इस भव सागर को पार करने कि मुस्कुराहट ही तरकीब है
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