Saturday, 23 October 2021

साक़ी आओ और पिलाओ

साक़ी आओ
और पिलाओ
वो जाम
जो छलकता
तुम्हारे हाथ मे
और साथ मे
तुम्हारी मतवाली चाल
बलखाती तुम्हारी कमर
और लहराते काले बाल
होंठो में मध्धम हंसी
आँखों मे भरी मस्ती
और अंधेरे में चमकते तुम्हारे गाल

साक़ी आओ
और पिलाओ
वो जाम
जो छलकता
तुम्हारे हाथ मे
और मत तड़पाओ
क्योंकि तलब लगी है पीने की
वो जो दवा है मेरे जीने की
और जलन मची है सीने में
क्या मजा आएगा पीने में
जब तुम लाओगी जाम का प्याला
धन्य होगी ये मधुशाला
दिल गाएगा जोर जोर से
प्रेम प्याला प्रेम प्याला

साक़ी आओ
और पिलाओ
वो जाम
जो छलकता
तुम्हारे हाथ मे
और मत तुम रोको आज मुझे
मत होने दो ये अहसास मुझे
की कोई नही इस दुनिया मे
जो समझ सके ये दर्द मेरा
जो साथ मे आके बैठे दो पल
और थाम सके ये हाथ मेरा

साक़ी आओ
और पिलाओ
वो जाम
जो छलकता
तुम्हारे हाथ मे
और थाम के मेरे हाथ को
मत रोको मेरे जज़्बात को
शैतान को
हैवान को
मार जाने दो अंदर के इंसान को
क्योंकि अब नही बचा है कोई भी कारण
मैं जी रहा हु बिन कोई कारण
भटक रहा हु शुबह शाम
दर बदर और सूनी गलियाँ
ढूंढने को बस एक ही कारण
जीने का मेरे एक कारण

साक़ी आओ
और पिलाओ
वो जाम
जो छलकता
तुम्हारे हाथ मे
और आज पिलाओ मुझे तुम इतना
जान बचे ना मुझमे जितना
मर जाऊँगा
मिट जाऊँगा
काम तमाम मैं कर जाऊँगा
और आखरी बार पिलाओ साक़ी
अब मुझमे जान बची ना बाकी
वो प्याला होंठ से मेरे मिला दो
मौत से मुझको आज मिला दो

Saturday, 9 October 2021

कुछ सवाल है मेरे, क्या जवाब दे पाओगी तुम?

कुछ सवाल है मेरे, क्या जवाब दे पाओगी तुम?
क्या साथ मेरा मेरी मौत तक निभा पाओगी तुम?
वो जो कसमे हमने खाई थी, कही तोड़ तो नही दोगी?
क्या वो सारे अधूरे वादे निभा पाओगी तुम?

ये तो मैं कई बार कह चुका हूँ कि मेरी सांसो में बसती हो तुम
इस धड़कते दिल से निकले हर खून के कतरे में हो तुम
क्या तुम्हारी वो साँसे, वो धड़कने मेरे नाम कर पाओगी तुम?

ये दुनिया भी कितनी अजीब है

ये दुनिया भी कितनी अजीब है
अपना हो तो ठिक है
दूसरे का हो तो उसका नसीब है

यहाँ ना कोई किसी के करीब है
जात पात, भेद भाव, ऊंच नीच
यहां कोई अमीर है तो कोई गरीब है

हर तरफ जालसाजी और चालबाजी का दौर है
इस भीड़ में कुछ लोग ईमानदार और शरीफ है

भूत और भविष्य की बाते होती आई है और होती रहेगी
जरूरत है यहां हर कोई अपने वर्तमान से वाक़िफ है

ये जीवन कष्ट और कठिनाइयों से भरा है
इस भव सागर को पार करने कि मुस्कुराहट ही तरकीब है

अगर में तुमसे बिछड़ जाऊ तो क्या मुझे याद करोगी?

अगर में तुमसे बिछड़ जाऊ तो क्या मुझे याद करोगी?
बेफिक्र सी हो किस्मत का खेल समझ लोगी या
मुझसे दुबारा मिलने की खुदा से फरियाद करोगी?

वो किसी मनचली की तरह मुझे मिलने बुलाना
वो किसी भी वक़्त बेवक़्त मुझे फ़ोन कर सताना
वो कल सुबह की फ़िक्र किये बिना मुझे रातभर जगाना
अपने कहे अनकहे किस्से और गहरे राज़ मुझे बेजिझक सुनाना
तुम्हारी नादानियों से जब तंग आ जाता हूँ तो मुझे मनाना
जब किसी मुसीबत में होता हूँ तब मुझे गले से लगाना
तुम्हारी गोदी में सिर रखता हूँ तो प्यार से थपथपाना
क्या मेरे बाद भी किसी और के साथ करोगी?
अगर में तुमसे बिछड़ जाऊ तो क्या मुझे याद करोगी?
बेफिक्र सी हो किस्मत का खेल समझ लोगी या
मुझसे दुबारा मिलने की खुदा से फरियाद करोगी?

जैसे मेरी जिंदगी में तुम खुशियो की बहार बनके आयी
जाने पहचाने चेहरो के बीच जैसे कोई गुमनाम बनके आयी
मेरी सुनी पड़ी जिंदगी में खुशनुमा शाम बनके आयी
बिछड़ चुका था खुद से ही मैं, तू मेरा नाम बनके आयी
मेरी इस बेकाम सी जिंदगी में मेरा इनाम बनके आयी
लाख मुद्दतो के बाद तू खुदा का पैगाम बनके आयी
क्या मेरे बाद भी किसी और कि जिंदगी ऐसे ही आबाद करोगी?
अगर में तुमसे बिछड़ जाऊ तो क्या मुझे याद करोगी?
बेफिक्र सी हो किस्मत का खेल समझ लोगी या
मुझसे दुबारा मिलने की खुदा से फरियाद करोगी?

अच्छा लगता था

अच्छा लगता था
सुबह दादाजी के साथ दूर तक सैर पर जाना
दिन में आंगन में लगे घने बरगद के पेड़ की छाँव में सोना
शाम को लकड़ी के चूल्हे पर सिकी गरम रोटियां खाना
और रात को दादी की लोरिया सुनते हुए सो जाना

अच्छा लगता था
बस्ता कंधे पर लटका कर स्कूल को जाना
सबसे आगे बैठकर सबसे ज्यादा मस्ती करना
स्कूल खत्म होते ही दोस्तो के साथ तफरी पर निकल जाना
और किले की छत पर बैठकर ढलते हुए सूरज को ताकना

अच्छा लगता था
गर्मी की छुट्टी में मामा के घर जाना
बरसात में स्कूल में सबसे अच्छी छतरी की होड़ लगाना
सर्दी में अलाव के पास बैठकर दादी से कहानियाँ सुनना
और बसंत में पतंगबाजी और गिल्ली डंडा खेलना

अच्छा लगता था
तालाब में कूद कूदकर नहाना
बैलगाड़ी के पीछे बैठकर कहीं भी चल देना
खेलते खेलते सुबह से शाम हो जाना
और घर पहुँच कर मम्मी से डांट खाना

और अब अच्छा नहीं लगता है
सुबह को बेमन से काम पर निकल जाना
दिनभर फीकी मुस्कान के साथ बसर करना
शाम को खिड़की से ही सूर्यास्त देखना
और रोज रात की यही सब सोचते सोचते सो जाना

किस हद तक चाहू में तुझे

किस हद तक चाहू में तुझे
फूलो की कलियों में तू दिखती
रातो की गलियो में तू दिखती
सुनसान सड़क के किनारो पर तू दिखती
जहाँ कदम वहाँ निशानों में तू दिखती
रोशनी की चमकाहट में तू दिखती
जहाँ नजर वहाँ बाहें फेलाए तू दिखती
मेरे दिन और रातो में तू दिखती
मेरे ख्वाबो और खयालो में भी तू ही दिखती

जहाँ भी हो, यादों में हो

जहाँ भी हो, यादों में हो
ख्वाबो में हो, खयालो में हो
मेरे दिन में हो, रातो में हो
सवालो में हो, जवाबो में हो
मेरे हर सफर के रास्तों में हो
उस सफर में हुई बातो में हो
मेरी खाई हुई कसमो में हो
रिवाजो में हो, रस्मो में हो
मेरी चुनी हुई हर राहो में हो 
हर लिखी हुई किताबो में हो
जहाँ भी हो, यादों में हो
उम्मीद है एक दिन मेरी बाहो में हो

कभी शौक से हमारे महखाने में वक्त गुजारने आना

कभी शौक से हमारे महखाने में वक्त गुजारने आना थोड़ी शराब पीकर खराब दिन की सूरत सुधारने आना मिजाज़ कुछ उखड़ा उखड़ा रहता है तुम्हारा अपनो से रू...